शिवमंगल सिंह 'सुमन' वाक्य
उच्चारण: [ shivemnegal sinh 'sumen' ]
उदाहरण वाक्य
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- वीं सदी में भारत का भविष्य: सुनील: शिवमंगल सिंह 'सुमन' व्याख्यान
- 21वीं सदी में भारत का भविष्य: सुनील: शिवमंगल सिंह 'सुमन' व्याख्यान
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- वीं सदी में भारत का भविष्य: सुनील: शिवमंगल सिंह 'सुमन' व्याख्यान | यही है वह जगह
- वीं सदी में भारत का भविष्य: सुनील: शिवमंगल सिंह 'सुमन' व्याख्यान « यही है वह जगह-
- मूल रूप से अंग्रेजी में दिये गये इस व्याख्यान का हिन्दी अनुवाद यश: शेष कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' ने किया था।
- कविः भगवती चरण वर्मा, जयशंकर प्रसाद, मोहम्मद इकबाल, श्यामलाल 'पार्षद', रामधारी सिंह' 'दिनकर ', शिवमंगल सिंह 'सुमन', गोपाल सिंह नेपाली, रामचन्द्र द्वि
- डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के मत में-“द्रौपदी के रूप में उत्सर्ग्शीला नारी के वर्चस्व को अत्यंत उदात्त रूप में उभरने का यह लाघव प्रयत्न सराहनीय है.”
- दिनकर, सुमित्रानंदन पंत, निराला, मैथिलीशरण गुप्त, भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', सोहनलाल द्विवेदी, शिवमंगल सिंह 'सुमन' और हरिवंशराय बच्चन जैसे कवियों को कविता पाठ करते हुए देखा है।
- अपनी कुछ सीमाओं के बावजूद यह स्मरण अंक उल्लेखनीय बन पड़ा है आशा है अगले स्मरण अंक में पं. सूर्यनारायण व्यास, डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' भाई रतन कुमार, श्री केशव पाठक, नर्मदा प्रसाद खरे, जीवनलाल वर्मा 'विद्रोही', रामकृष्ण श्रीवास्तव, डॉ. विनय दुबे, रामेश्वर शुक्ल अंचल, गिरिजा कुमार माथुर, भारतभूषण अग्रवाल, डॉ. धर्मवीर भारती, श्याम व्यास, कवि रामविलास शर्मा ('कविता में सुबह' वाले) डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र आदि को भी इस परिधि में सम्मिलित किया जाएगा
- डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के मत में-“द्रौपदी के रूप में उत्सर्ग्शीला नारी के वर्चस्व को अत्यंत उदात्त रूप में उभरने का यह लाघव प्रयत्न सराहनीय है.” श्री नरेश मेहता को “काफी समय से हिंदी में ऐसी और इतनी तुष्टि देनेवाली रचना नजर नहीं आयी.” उनको तो “पढ़ते समय ऐसा लगता रहा कि द्रौपदी को पढ़ा जरूर था पर शायद देखना आज हुआ है.” आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के अनुसार-“द्रौपदी को महाभारती कहना अपने आप में एक विशिष्ट उपलब्धि है.” स्वयं चित्रा जी के अनुसार-“यह कहानी न्याय पाने हेतु भटकती हुई गुहार की कहानी है.
- डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' के मत में-“द्रौपदी के रूप में उत्सर्ग्शीला नारी के वर्चस्व को अत्यंत उदात्त रूप में उभरने का यह लाघव प्रयत्न सराहनीय है.” श्री नरेश मेहता को “काफी समय से हिंदी में ऐसी और इतनी तुष्टि देनेवाली रचना नजर नहीं आयी.” उनको तो “पढ़ते समय ऐसा लगता रहा कि द्रौपदी को पढ़ा जरूर था पर शायद देखना आज हुआ है.” आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के अनुसार-“द्रौपदी को महाभारती कहना अपने आप में एक विशिष्ट उपलब्धि है.” स्वयं चित्रा जी के अनुसार-“यह कहानी न्याय पाने हेतु भटकती हुई गुहार की कहानी है.
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